बिकी हुई मीडिया
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बिकी हुई मीडिया
कितना झूठ बोलोगे तुम..
कितना सच छुपाओगे तुम..
सच छुपता नहीं... निखर जाता है,
तुम्हें पता है..तुम क्या कर रहे हो
आवाज उठाने वालों को रुला रहे हो
देशहितो को देशद्रोही बना रहे हो
बुलंद आवाज को तुम झुका रहे हो
तुम्हें पता है .. तुम्हें पूरी दुनिया देखती है
तुम जो दिखाते हो, उसे सच मानती है
तुमपर भरोसा करती है....और
हमें पता है..तुम्हारा नेटवर्क बहुत बड़ा है.. तुम विकास कर रहे हो..
पर तुम्हें देश के हालात पता है..हमारा जी.डी.पी. कितना गिरा है
कितना झूठ बोलोगे तुम,
कितना सच छुपाओगे तुम,
दुनिया का सबसे ज्यादा युवा बेरोजगारी भारत की हो गई है.. तुम्हें दिखाता नहीं
तुम्हारे बहस के मुददे ऐसे क्यू होते हैं
तुम नेताओं के पक्ष में ही क्यो रहते हो
कितना झूठ बोलोगे तुम,
कितना सच छुपाओगे तुम,
अब तुम्ही देखो,
जिन्हें तुम देशद्रोही बताते हो .. उन्हें रैमन मैगसेसे पुरस्कार मिल जाता है,
हेमंत झा की कलम से
nice
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